बीमारियों
के प्रबन्धन के लिये हमें डिज़िज़ ट्राईएंगल को समझना आवश्यक है, यही बीमारियों के एकीकृत
प्रबन्धन का आधार है। बीमारी त्रिकोण के तीन घटकों (कारक, होस्ट, वातावरण) में होस्ट
को तो बदला नहीं जा सकता है परन्तु कारक एवं वातावरण में वांछित बदलाव कर के बीमारियों
का ईको फ़्रैंडली प्रबन्धन किया जा सकता है। एकीकृत प्रबन्धन की कड़ी का पहला सिद्धांत
फ़ाईटो सैनीटेशन है जिसके द्वारा हम बीमारी के कारकों का प्राईमरी ईनोकुलम कम करते हैं
ये अधिकतर सर्दियों में किये गये वो कार्य होते हैं जिनके द्वारा हम बीमारी से ग्रसित
पत्तों व पेड़ के अन्य भागों को साफ़ करते हैं। दूसरा सिद्धांत बीमारी के लिए फेवरेवल
वातावरण को मोडिफाई करने से भी बीमारियों का प्रबन्धन किया जा सकता है। उदाहरण के लिये
मार्सोनिना के लिये उच्च तापमान के साथ-साथ उच्च आर्द्रता भी चाहिए। ऐसी स्थिती में
क्या किया जाए? सर्दियों में कैनोपी मैनेज़मैंट द्वारा धूप व हवा का सर्कुलेशन इम्प्रूव
कर पेड़ों का माईक्रोक्लाईमेट बदला जा सकता है। जिसमें आजकल घास की सफ़ाई व समर प्रूनिंग
भी शामिल है। घास की सफाई व समर प्रूनिंग से क्या होगा? हवा का सर्कुलेशन इम्प्रूव
होगा तथा हाई रिलेटिव ह्युमिडिटी की स्थिती भी उत्पन्न नहीं होगी जिससे पत्तों में
आने वाली बिमारियों के लिये वांछित वातावरण में बदलाव होगा और बीमारी उत्पन्न नहीं
होगी। वातावरण से ही सम्बंधित बायोकंट्रोल एजेंट्स का प्रयोग तीसरे सिद्धांत के रूप
में कार्य करता है। कैसे? फाइलोप्लेन में बहुत सारे माईक्रो-ओर्गेनिज्मज होते हैं जो
बीमारी के कारकों को बीमारी फैलाने नहीं देते हैं। यदि वातावरण बीमारियों के लिये फ़ेवरेवल
हो रहा हो तो हमें पहले ही कुछ बायोकंट्रोल एजेंटों जैसे स्यूडोमोनास, बैसिलस इत्यादि
का प्रयोग करना चाहिये। हालांकि यूनिवर्सिटी की रिसर्च में इनके एनकरेजिंग रिजल्ट मिले
हैं फिर भी अभी इनमें और शोध की आवश्यकता है ताकि ये सब रिकोमेंडेशन में आ सके। यदि
हम इन सब सिद्धांतों का प्रयोग करें तो चौथे सिद्धांत यानि पेस्टीसाईड्ज़ की आवश्यकता
बहुत कम हो जाती है। इससे न केवल फल उत्पादन की लागत कम होती है अपितु उच्च गुणवत्तायुक्त
फल मंडियों में पंहुचा कर उच्च दामों पर बेचा जा सकता है। जिससे न केवल लाभ बढ़ता है
परन्तु उपभोक्ता की सेहत भी बनी रहती है।
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